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नर हो न निराश करो मन को

Teachers of Bihar नर हो न निराश करो  मन को कुछ काम करो, कुछ काम करो जग में रहकर कुछ नाम करो यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो कुछ तो उपयुक्त करो तन को नर हो, न निराश करो मन को. संभलो कि सुयोग न जाय चला कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला समझो जग को न गिरा सपना पथ आप प्रशस्त करो अपना अखिलेश्वर है अवलंबन को नर हो, न निराश करो मन को. जब प्राप्त तुम्हें सब तत्व यहाँ फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो उठके अमरत्व विधान करो दवरूप रहो भव कानन को नर हो, न निराश करो मन को. निज गौरव का नित ज्ञान रहे हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे मरणोत्तर गुंजित गान रहे सब जाय अभी पर मान रहे कुछ हो न तजो निज साधन को नर हो, न निराश करो मन को. प्रभु ने तुमको कर दान किए सब वांछित वस्तु विधान किए तुम प्राप्त करो उनको न अहो फिर है यह किसका दोष कहो समझो न अलभ्य किसी धन को नर हो, न निराश करो मन को. किस गौरव के तुम योग्य नहीं कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं जान हो तुम भी जगदीश्वर के सब है जिसके अपने घर के फिर दुर्लभ क्या उसके

कोई यूं ही नहीं चला जाता

Teachers of Bihar कोई यूं ही नहीं चला जाता आइए संकल्प लें और अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करें ,ताकि समाज में हो रहे सुसाइड जैसी घटनाएँ रुक  सके मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है  समाज का दायित्व बनता है कि  खराब परिस्थितियों में भी  एक दूसरे का सहयोग प्रदान करें । टूटते हुए आत्मबल को संबल प्रदान करें । मानसिक तनाव हो या  एकाकीपन से  पीड़ित व्यक्ति को हौसला अफजाई करें, उसका साथ दें।  प्राचीन काल में सभी लोग संयुक्त परिवार में रहा करते थे एक समाज से जुड़े होने के कारण अपनी बातों को समाज के बीच रखते थे उन समस्याओं का समाधान  लोगों से मिलजुलकर हो  जाता था। यदि किसी के साथ कोई मुश्किल है सफलता असफलता होती थी तो लोग उसे सहयोग और प्रोत्साहन दिया करते थे लेकिन अब बदलते दौर बदलते परिवेश में समाज टूटा परिवार टूटा और व्यक्ति एकाकी होता गया और  होता जा रहा है। स्थिति ऐसी है कि किसी  के बुरे हालात या असफलता को देखकर उसका उपहास उड़ाया जाना पीठ पीछे कमेंट बुराई और हतोत्साह करने की जो समाज के कुछ लोगों के द्वारा कुत्सित परिपाटी बन गई है । वह कहीं न कहीं डिप्रेशन, असफलता,  एकाकीपन  से गुजर र